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# देवी भुवनेश्वरी के जन्म की कथा

प्रकृति स्वरुपा, देवी भुवनेश्वरी को, माता सती के 10 रूपों में से चौथा रूप माना गया है। माँ भुवनेश्वरी ने, मनुष्यों को जीवन के पंच तत्वों का मूल समझाया, और यह भी बतलाया, कि ब्रह्मांड में मानव जाति का क्या महत्व है।
भुवनेश्वरी शब्द, दो शब्दों के मेल से बना हुआ है, ‘भुवन’ और ईश्वरी, जिससे इस भुवनेश्वरी का अर्थ बंता है, समस्त संसार के ऐश्वर्य की धात्री। परंतु क्या आप जानते हैं, माता भुवनेश्वरी की जन्म के साथ, कौन सी कथा जुड़ी हुई है? अगर नहीं, तो चलिए आज हम आपको इस रोचक कथा से अवगत कराते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार दुर्गम नामक दैत्य के अत्याचार से त्रस्त होकर, देवताओं और ब्राह्मणों ने भगवती की आराधना करने का निश्चय किया। तब उन्होंने इस उद्देश्य से, हिमालय की ओर प्रस्थान किया, और वहाँ जाकर सर्वकारण स्वरूपा भगवती भुवनेश्वरी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर, भगवती भुवनेश्वरी प्रकट हुईं।
देवी भुवनेश्वरी का वह स्वरूप मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। उन्होंने अपने हाथों में बाण, कमल का पुष्प तथा शाक-मूल धारण किया हुआ था। देवताओं और ब्राह्मणों की विनती सुन, तब माता ने, अपने नेत्रों से अश्रु की सहस्र धाराएँ प्रकट कीं। इस जल से भूमण्डल के सभी प्राणी तृप्त हो गये। समुद्रों तथा सरिताओं में भी, पर्याप्त जल भर गया और समस्त औषधियों की सिंचाई हो गई।
माता भुवनेश्वरी के हाथों में शाकों और फल-मूलों के होने के कारण, वह देवी ‘शताक्षी’ तथा ‘शाकम्भरी’ के नामों से विख्यात हुईं। देवी भुवनेश्वरी ने ही दुर्गमासुर का संहार कर, उसके द्वारा अपहृत वेदों को, पुनः देवताओं को सौंपा था। इसी घटने के पश्चात, भगवती भुवनेश्वरी, ‘दुर्गा’ के नाम से भी पूजित हुईं। देवी भुवनेश्वरी की जयंती, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की, द्वादशी तिथि को मनाई जाती है।
तो यह थी, देवी भुवनेश्वरी के परिचय से जुड़ी एक रोचक कथा। क्या आपको यह कथा अच्छी लगी? अगर हाँ, तो इस प्रकार की और भी धर्म-सम्बंधित जानकारि